मिथ्या विचार धारा

काहे का वसुधा कुटुम्ब का मिथ्या विचार धारा
जब खुद को ही नहीं नीड़ का सहारा
दूध की कटोरी ठुकराता साहीब का गबरू दुलारा
तो वहीँ दरवाजे पे बीबी जी से दुत्कारा जाता इंसान आवारा
मखमली चादरों में स्वपन देखता अमीर संसार हमारा
तब छज्जे के नीचे अपनी ही चमड़ी का चादर ओढ़े ठिठूरता बूढ़ा बेचारा
जब हर जन्म-दिन पर बंटी बाबू का कटता हज़ारों का केक न्यारा
तभी अस्पताल की चौखट पे कोई कोख में ही हो जाता अल्लाह को प्यारा 
काहे का वसुधा कुटुम्ब का मिथ्या विचार धारा ..............

                                                             -Praveen Kumar "POO"   21/Feb/10

"Kal Ki Baat" completely describes my JNV Mau (school) life.


Kal Ki Baat .......
" कल की बात "

निद्रा -रीपु भोर की सीटी , कष्ट -दायिनी   भौतिक P.T.
अधखुले पलकों में दौड़ के कुछ चक्कर
अंत में पाना अल्प अंकुरित चना और शक्कर ,
"Call of Nature" की प्रतिस्पर्धा   Race
मिलता Gold Medal सा   Bucket-Case,
अब ,कौवा - स्नान , नाश्ते में ब्रेड -अंशों का खाली परात
तो कभी चखना थाली भर " पीला भात ",
.....बन चुका है कल की बात !!!

 गंदे जूतों के ऊपर सरकारी Dress.
वो कृष्णा की बांसुरी नहीं ,Warning bell ,
Morning Assembly का प्रयाण -गीत
कभी सदविचार ,समाचार ,तो कभी करना परियोजना   कार्य ,
समान्य -ज्ञान के पूछे अनसुलझे सवाल
अब दिनभर गुन-गुनाना "उसका " काव्य पाठ ,
.....बन चुका है कल की बात !!!
 
मस्तिष्क को प्रताड़ित करता पठन -पाठन -अध्याय
मन की त्याग , सुनना "उनकी " आशय -विहीन बकवाश ,
Break और खाली Period में मस्ती का वो अंदाज
कभी खेलना -झगड़ना , तो कभी कल सा, कलम घिसता , हाथ
अब करना "उसके " क्षणिक झलक से अलौकिकता   का एहशाश
,
.....बन चुका है कल की बात !!!
 
ख़त्म होता ऐसे दिन के कुछ पहर
भूख -तृष्णा का भी उग्र कहर
Concave Mirror का आभास कराता उदर ,
थाली नचाते हाथ , तो पग, चलते Mess की राह
वो कच्ची -सुखी रोटियाँ , तो कभी तैल नहाई पूरियां
अधुरा कर जाते पेट और मन की चाह ,
अब श्वान निद्रा का प्रयत्न और प्रयोजन विहीन Remedial Class
....बन चुका है कल की बात !!!



TEA-TIME !! हाथों में लिए गिलास ,चल पड़े संग अपने यार
चाय पीने के बहाने , करने , आखें चार ,
छत पे , Room में ,क्रिकेट के Boundary तगड़े
नियमों को खुद तोड़ना -मरोड़ना ,फिर करना झगड़े ,
कभी Volley , T.T., तो कभी कड़ी धूप   में क्रिकेट से करना बुरा हाल
अब "उन लोगों " के संग खेलना Hand-Ball,
....बन चुका है कल की बात !!!

संध्या गान, विसर्जन और जय-हिंद की Chorus आवाज
तन को अल्प-विराम दे, स्व-अध्ययन का प्रयास ,
रात्रि -भोज पश्चात एक दूजे से करना अपनी दिनचर्या   बयान
करना कभी "इसकी " तो कभी "उसकी " Beauty का हार्दिक- बखान ,
आधी रात छत पे ,मोम-लैंप की बत्ती में लड़ती Carrom की रानी
तो कभी छत पे ही सोना और सुनना - सुनाना बे-सर पैर की कहानी ,
अब बे-फिक्र चैन से आखें मूदना लिए दिल में "उसकी " याद
....बन चुका है कल की बात !!!
 

बारिश में लड़ाना "उन लोगों " से छतरी ,गोया हो जैसे DUTY
खिड़की पे बैठ करना "उनका " इंतज़ार और मारना सिटी ,
इन्द्र--जल में खेल , तोड़ना हड्डी और होना Muddy
शर्दियों   की मृदु धूप में, छत पे ,झाड़ियों   में करना Study,
बचकाना शरारतें , तो कभी हड़ताल से प्रसाशन को बनाना Crazy
"मालिक " से खाना गाज़र -पापड़ी ,बदले में देकर रद्दी ,
अब,कीचड़ की होली , करना यारों संग Group स्नान
.....बन चुका है कल की बात !!!
 
Night-Light गूल होने के बाद का गूंजता शोर
आपस में खनकती थालियाँ , Hand-Pump का अदभुत Roar,
बनना Zero Batch का Hero,तो कभी Villain हो के Late
दुसरे की Plate में भुनना चने ,तो कभी बनाना Omelet,
पढ़ना छोड़ ,रातों को बनाना Malyalam Cheating की युक्तियाँ
रखना   सबके Nickname,खुद ही बनाना एक दूजे की जोड़ियाँ ,
अब, सबके साथ गुजारे लाखों हसीन लम्हे और वो सात साल
.....बन चुका है कल की बात !!!

 



                                                 - Praveen Kumar “POO”
                                                                                                                  11-Aug-09

||एक बार फ़िर मैं बचपन में ||

This is my most beloved poem. Meanings are very clear.

||एक बार फ़िर मैं बचपन में ||
 
एक बार फ़िर मैं बचपन में जाना चाहता हूँ |
जो खो चुका हूँ उसे फ़िर से पाना चाहता हूँ |

माँ की गोद में सर रख बेफिक्र सोना चाहता हूँ |
बार -बार हर बार गलतियां कर के भी खुश होना चाहता हूँ |
एक बार फ़िर भगवान को भी अपना खिलौना बनाना चाहता हूँ |
अपना -पराया ,ऊँच-नीच का भेद भुला सबको अपनाना चाहता हूँ |

एक बार फ़िर मैं बचपन में जाना चाहता हूँ ||
जो खो चुका हूँ उसे फ़िर से पाना चाहता हूँ || ||

बोध वाचालता से एक बार फ़िर बड़ों का ग़म भुलाना चाहता हूँ |
हर एक नादान मुस्कराहट पे दूसरो की मुस्कान देखना चाहता हूँ |
असीम उत्सुक प्रश्नों से सबको हराना चाहता हूँ |
प्रेम -द्वेष के अन्तर को भुला, एक और जीवन जीना चाहता हूँ |

एक बार फ़िर मैं बचपन में जाना चाहता हूँ |
जो खो चुका हूँ उसे फ़िर से पाना चाहता हूँ ||

सब कुछ खो कर भी शव-ताल पे नाचना चाहता हूँ |
भूल सारे ग़म ,चीटियों -तितिलियों के पीछे फ़िर से भागना चाहता हूँ  |
चाही-अनचाही लाख शरारतों के बाद भी,दुलार की थपकियाँ खाना चाहता हूँ |
एकतारे वाले जोगी को देख,आखें मूंद, माँ के आँचल में सदा के लिए छुप जाना चाहता हूँ |

एक बार फ़िर मैं बचपन में  जाना चाहता हूँ ||
जो खो चुका हूँ उसे फ़िर से पाना चाहता हूँ ||

-Praveen Kumar "POO"

swapna navodaya

This is my first poem that I penned in 11th std. It was like a home work so I decided to write on my Alma Mater. So it dedicated to "JNV Mau".
!!स्वप्न नवोदय !!

सपना
देखा लाल,लाल का, सशक्त नेता भारत राष्ट्र का
जो प्रतिभा नही रजवाड़ों में वो धूमिल पड़ी है गावों में !!
फिर भू से मिला स्वप्न नवोदय,
उत्थान था मेरा, तुम्हारा, हम सबका,
निश्छल  ज्ञान  के इस मंदिर में '
परिलक्षित होता अरमां दिल का !!
नव स्फूर्ति लिए ,दृढ़ संकल्पित हम मानवता के योगी,
हम ही होंगे कृष्ण-राम ,जनगन-अधिनायक,
बनेंगे पंडित-ज्ञानी,नहीं बनेंगे अभिमानी ,
खरे होंगे प्रयोग हमारे,हम ही होंगे कल के खोजी !!
नवोदय जन्मभूमि भविष्य का,संवारेगा भारत महान,
प्रेम,बंधुत्व,प्रवीनता के आगे झुक जाएगा आसमान,
रघुकुल,रीति-निति होगी,
बिन जंग नतमस्तक होगा सारा जहाँ !!
सत्य के बाण से ,सत्संग के वार से ,पवित्रता के तप से,
कूच कर जाएगा अत्याचार-ब्याभिचार-भ्रष्टाचार ,
बन्दूक नहीं,तोप नहीं,शिष्टाचार होगा अपना हथियार,
गूँजेगा नवोदय शिक्षा-शिक्षक का जय-जयकार !!
लेकर गुरु-तात-मात का आशीर्वाद
करेंगे राष्ट्र-भक्त का सपना साकार !!

      Praveen Kumar "POO"







मेरे सपनों का संसार

This one depicts my imaginary world. first one at IIT-Kanpur  
"मेरे सपनो का संसार "

सूर्य-किरण का आभास,टूटा मेरे स्वप्नों का संसार
आँखें मलते थामा हर रोज सा अखबार
पर !!पलकें खुली की खुली ही रह गई
चित्रों -शब्दों में थी, बेबशी लाचारी और उत्पीडन की चीत्कार
भूल कर्तव्यों को इंसान ,अधिकारों के लिए कर रहा मार
कहीं राजनीती ,शासन, दल-बल से गरीब लाचार
तो कहीं मचा है आतंकवाद से हाहाकार
नहीं ! ये ना था मेरे सपनों का संसार ||
एक तो कुदरत का कहर ,दूजे प्रदुषण धुँआधार
कहीं हत्या-शोषण तो कहीं सीमाएं लाँघ रहा व्यभिचार
बाप-बेटी ,भाई -बहन,पाक रिश्तों को भुला रहा इंसान ,
प्यार ,ममता जैसी मानव भावनाओं का भी हो रहा व्यापार ;
नही!! ये ना था मेरे सपनों का संसार ||
शिक्षा कर रही बेरोजगारों की सेना तैयार
अब शिक्षक भी करने लगा दुराचार
साक्षरता बढ़ी ,पर जागरूकता के कम है आसार
हर कोई मौके की ताक में कर रहा भ्रष्टाचार
चाहे हो चपरासी-कलर्क-मालिक या सरकार
नहीं !! ये ना था मेरे सपनों का संसार ||
                                                  Praveen Kumar "POO"

my school prayer

हम नवयुग की नई भरती , नई आरती
हम स्वराज की ऋचा नवल
भारत की नव -लय हों
नव सूर्योदय नव चंद्रोदय
हमीं नवोदय हों ..........
हम नव युग की ................
रंग -जाति-पाति , पद- भेद रहित
हम सबका एक भगवान हो
संतानें धरती माँ की हम
धरती पूजा स्थान हो
पूजा के खिल रहे कमल - दल
हम नव जल में हों
सूर्योदय के नव बसंत के हमी नवोदय हों
हम नवयुग की.................!!

मानव हैं हम हलचल हम
प्रकृति के पावन देश की
खिले फले हम में संस्कृति
इस अपने भारत देश की
हम हिमगिरी हम नदियाँ
हम सागर की लहरें हों ....
नव सूर्योदय नव चंद्रोदय
हमी नवोदय हों
हम नवयुग की ....................
हरी दुधिया क्रांति शान्ति के
श्रम के बंदनवार हों ...
भागीरथी हम धरती माँ के
सुरम वीर पहरेदार हों
सत्यम शिवम् सुन्दरम की नई
पहचान बनाये जग में हम
अन्तरिक्ष के ज्ञान - यान के हमी
नवोदय हों ...
हम नवयुग की ............

कहाँ हो सुमित !!!

This one is inspired from some other poem (I don't know the exact poem) was posted in GSVM Medical College's Magazine, but the concept and theme is different from original one.
This poem is completely dedicated to my classmates with whom I spend 7 years(most memorable and beautiful days of my life). It contains almost all names of my classmates except few.



मेरी "चन्द्र "(chandraprakash) सी "शीतल "
"सौम्य "(saumya) "नवीन " "आकांक्षा " को
अपने स्नेह रूपी "अरुण " की "रश्मि " से
"अपराजीत "(aparajeeta) बना,
कहाँ चले गए तुम ?

"नीरज " के दर्पण में
"आकाश " की "रेखाओं "(rekha) से झांक -कर,
अपने "निराले "(nirala) "विवेक " से ,
"आशीष " रूपी "प्रतिमा " से
मेरे जीवन का "अभिषेक " कर
कहाँ चले गए तुम ?

"अनजानी "(atul anjan),"आदित्य "-"विभा " से वंचित
इन नयनो में "सिन्धु "सा अथाह "नम्र "(namrata) उर्जा भर
"राजीव"-"नीलम " से "अर्चना " कर ,
"अमर "(amarjeet) बना ,
कहाँ चले गए तुम ?

मेरे "राकेश " तुल्य जीवन को
अपने "विनय " रूपी "सुमन " के "सौरभ " से
"ज्योतिर्मय "(anand jyoti) कर ,
कहाँ चले गए तुम ?

इस "अनिल " सा गतिमान पथिक को
अपनी "प्रवीणता "(praveen) की "लता "(hemlata) से
"विनीत "(vinita) "ममता " से "आनंद "(ayush anand) दे ,
कहाँ चले गए तुम ?

"लक्ष्मी "-"रूपम " के मोह रूपी "पवन " में
भटकते इस अस्थिर लक्ष्य विहीन "रवि "-किरण को
अपने "सिद्धार्थ " रूप में "मोनिका" बन , "जीतेंद्र " बना,
कहाँ चले गए तुम ?

"मदन " रचित मोह -माया के "विपिन" में
दायित्व से परे भटकते, तम जीवन को
"पूनम " की रात सा उज्ज्वल बना ,
कहाँ चले गए तुम ?

पर-"श्रवण" विश्वासी, "दिवाकर"-अंशु सा चंचल
तुच्छ -"छोटे"(chhotelal) कृत्यों में तल्लीन
जीवन के यथार्थ "सोनाली"-"रंजना" से अपरचित
मेरे मृत सी आत्मा को ,पुनः "सुजाता" रूप में "रीना" कर
"शैलेन्द्र"-शिखा की विशालता ,दृढ़ता व उज्ज्वलता दे
कहाँ चले गए तुम ?


अपने "अमित " रूपी ज्ञान -"सविता " को
"शिल्पा "समान मानस पटल पर "अंकित " कर
हाला सा दूषित अन्तः मन को ,"रिशिन्द्र" बना
"सुमित " !!
कहाँ चले गए तुम ?

मंथर -मंथर "वीरों"(veer bahadur) की चाल में ,
"सोहन"-सजीले शैलेश-पहाड़ी ढाल में
"अजय " हैं जो ,"सर्वजीत " हैं जो ,
"धर्मेन्द्र " हैं जो ,"राजेंद्र " हैं जो
"गंगेश " हैं जो ,"कमलेश " हैं जो ,
"रमेश " हैं जो ,"अमरीश " हैं जो
राजेश हैं जो ,"उमेश " हैं जो ,
"रविन्द्र " हैं जो ,"देवेन्द्र " हैं जो ,
"सोनेंद्र " हैं जो,
मर्यादा पुरुसोत्तम "राम"(ramu/rampravesh) सदृश हैं जो ,
के जय -जयकार की "गुंजन " में ,
कहाँ अदृष्ट हो गए तुम ???

                                                                              -Praveen Kumar "POO"