काहे का वसुधा कुटुम्ब का मिथ्या विचार धारा
जब खुद को ही नहीं नीड़ का सहारा
दूध की कटोरी ठुकराता साहीब का गबरू दुलारा
तो वहीँ दरवाजे पे बीबी जी से दुत्कारा जाता इंसान आवारा
मखमली चादरों में स्वपन देखता अमीर संसार हमारा
तब छज्जे के नीचे अपनी ही चमड़ी का चादर ओढ़े ठिठूरता बूढ़ा बेचारा
जब हर जन्म-दिन पर बंटी बाबू का कटता हज़ारों का केक न्यारा
तभी अस्पताल की चौखट पे कोई कोख में ही हो जाता अल्लाह को प्यारा
जब खुद को ही नहीं नीड़ का सहारा
दूध की कटोरी ठुकराता साहीब का गबरू दुलारा
तो वहीँ दरवाजे पे बीबी जी से दुत्कारा जाता इंसान आवारा
मखमली चादरों में स्वपन देखता अमीर संसार हमारा
तब छज्जे के नीचे अपनी ही चमड़ी का चादर ओढ़े ठिठूरता बूढ़ा बेचारा
जब हर जन्म-दिन पर बंटी बाबू का कटता हज़ारों का केक न्यारा
तभी अस्पताल की चौखट पे कोई कोख में ही हो जाता अल्लाह को प्यारा
काहे का वसुधा कुटुम्ब का मिथ्या विचार धारा ..............
-Praveen Kumar "POO" 21/Feb/10
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