कहाँ हो सुमित !!!

This one is inspired from some other poem (I don't know the exact poem) was posted in GSVM Medical College's Magazine, but the concept and theme is different from original one.
This poem is completely dedicated to my classmates with whom I spend 7 years(most memorable and beautiful days of my life). It contains almost all names of my classmates except few.



मेरी "चन्द्र "(chandraprakash) सी "शीतल "
"सौम्य "(saumya) "नवीन " "आकांक्षा " को
अपने स्नेह रूपी "अरुण " की "रश्मि " से
"अपराजीत "(aparajeeta) बना,
कहाँ चले गए तुम ?

"नीरज " के दर्पण में
"आकाश " की "रेखाओं "(rekha) से झांक -कर,
अपने "निराले "(nirala) "विवेक " से ,
"आशीष " रूपी "प्रतिमा " से
मेरे जीवन का "अभिषेक " कर
कहाँ चले गए तुम ?

"अनजानी "(atul anjan),"आदित्य "-"विभा " से वंचित
इन नयनो में "सिन्धु "सा अथाह "नम्र "(namrata) उर्जा भर
"राजीव"-"नीलम " से "अर्चना " कर ,
"अमर "(amarjeet) बना ,
कहाँ चले गए तुम ?

मेरे "राकेश " तुल्य जीवन को
अपने "विनय " रूपी "सुमन " के "सौरभ " से
"ज्योतिर्मय "(anand jyoti) कर ,
कहाँ चले गए तुम ?

इस "अनिल " सा गतिमान पथिक को
अपनी "प्रवीणता "(praveen) की "लता "(hemlata) से
"विनीत "(vinita) "ममता " से "आनंद "(ayush anand) दे ,
कहाँ चले गए तुम ?

"लक्ष्मी "-"रूपम " के मोह रूपी "पवन " में
भटकते इस अस्थिर लक्ष्य विहीन "रवि "-किरण को
अपने "सिद्धार्थ " रूप में "मोनिका" बन , "जीतेंद्र " बना,
कहाँ चले गए तुम ?

"मदन " रचित मोह -माया के "विपिन" में
दायित्व से परे भटकते, तम जीवन को
"पूनम " की रात सा उज्ज्वल बना ,
कहाँ चले गए तुम ?

पर-"श्रवण" विश्वासी, "दिवाकर"-अंशु सा चंचल
तुच्छ -"छोटे"(chhotelal) कृत्यों में तल्लीन
जीवन के यथार्थ "सोनाली"-"रंजना" से अपरचित
मेरे मृत सी आत्मा को ,पुनः "सुजाता" रूप में "रीना" कर
"शैलेन्द्र"-शिखा की विशालता ,दृढ़ता व उज्ज्वलता दे
कहाँ चले गए तुम ?


अपने "अमित " रूपी ज्ञान -"सविता " को
"शिल्पा "समान मानस पटल पर "अंकित " कर
हाला सा दूषित अन्तः मन को ,"रिशिन्द्र" बना
"सुमित " !!
कहाँ चले गए तुम ?

मंथर -मंथर "वीरों"(veer bahadur) की चाल में ,
"सोहन"-सजीले शैलेश-पहाड़ी ढाल में
"अजय " हैं जो ,"सर्वजीत " हैं जो ,
"धर्मेन्द्र " हैं जो ,"राजेंद्र " हैं जो
"गंगेश " हैं जो ,"कमलेश " हैं जो ,
"रमेश " हैं जो ,"अमरीश " हैं जो
राजेश हैं जो ,"उमेश " हैं जो ,
"रविन्द्र " हैं जो ,"देवेन्द्र " हैं जो ,
"सोनेंद्र " हैं जो,
मर्यादा पुरुसोत्तम "राम"(ramu/rampravesh) सदृश हैं जो ,
के जय -जयकार की "गुंजन " में ,
कहाँ अदृष्ट हो गए तुम ???

                                                                              -Praveen Kumar "POO"
                           





0 Response to "कहाँ हो सुमित !!!"