||एक बार फ़िर मैं बचपन में ||

This is my most beloved poem. Meanings are very clear.

||एक बार फ़िर मैं बचपन में ||
 
एक बार फ़िर मैं बचपन में जाना चाहता हूँ |
जो खो चुका हूँ उसे फ़िर से पाना चाहता हूँ |

माँ की गोद में सर रख बेफिक्र सोना चाहता हूँ |
बार -बार हर बार गलतियां कर के भी खुश होना चाहता हूँ |
एक बार फ़िर भगवान को भी अपना खिलौना बनाना चाहता हूँ |
अपना -पराया ,ऊँच-नीच का भेद भुला सबको अपनाना चाहता हूँ |

एक बार फ़िर मैं बचपन में जाना चाहता हूँ ||
जो खो चुका हूँ उसे फ़िर से पाना चाहता हूँ || ||

बोध वाचालता से एक बार फ़िर बड़ों का ग़म भुलाना चाहता हूँ |
हर एक नादान मुस्कराहट पे दूसरो की मुस्कान देखना चाहता हूँ |
असीम उत्सुक प्रश्नों से सबको हराना चाहता हूँ |
प्रेम -द्वेष के अन्तर को भुला, एक और जीवन जीना चाहता हूँ |

एक बार फ़िर मैं बचपन में जाना चाहता हूँ |
जो खो चुका हूँ उसे फ़िर से पाना चाहता हूँ ||

सब कुछ खो कर भी शव-ताल पे नाचना चाहता हूँ |
भूल सारे ग़म ,चीटियों -तितिलियों के पीछे फ़िर से भागना चाहता हूँ  |
चाही-अनचाही लाख शरारतों के बाद भी,दुलार की थपकियाँ खाना चाहता हूँ |
एकतारे वाले जोगी को देख,आखें मूंद, माँ के आँचल में सदा के लिए छुप जाना चाहता हूँ |

एक बार फ़िर मैं बचपन में  जाना चाहता हूँ ||
जो खो चुका हूँ उसे फ़िर से पाना चाहता हूँ ||

-Praveen Kumar "POO"

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