मेरे सपनों का संसार

This one depicts my imaginary world. first one at IIT-Kanpur  
"मेरे सपनो का संसार "

सूर्य-किरण का आभास,टूटा मेरे स्वप्नों का संसार
आँखें मलते थामा हर रोज सा अखबार
पर !!पलकें खुली की खुली ही रह गई
चित्रों -शब्दों में थी, बेबशी लाचारी और उत्पीडन की चीत्कार
भूल कर्तव्यों को इंसान ,अधिकारों के लिए कर रहा मार
कहीं राजनीती ,शासन, दल-बल से गरीब लाचार
तो कहीं मचा है आतंकवाद से हाहाकार
नहीं ! ये ना था मेरे सपनों का संसार ||
एक तो कुदरत का कहर ,दूजे प्रदुषण धुँआधार
कहीं हत्या-शोषण तो कहीं सीमाएं लाँघ रहा व्यभिचार
बाप-बेटी ,भाई -बहन,पाक रिश्तों को भुला रहा इंसान ,
प्यार ,ममता जैसी मानव भावनाओं का भी हो रहा व्यापार ;
नही!! ये ना था मेरे सपनों का संसार ||
शिक्षा कर रही बेरोजगारों की सेना तैयार
अब शिक्षक भी करने लगा दुराचार
साक्षरता बढ़ी ,पर जागरूकता के कम है आसार
हर कोई मौके की ताक में कर रहा भ्रष्टाचार
चाहे हो चपरासी-कलर्क-मालिक या सरकार
नहीं !! ये ना था मेरे सपनों का संसार ||
                                                  Praveen Kumar "POO"

0 Response to "मेरे सपनों का संसार"